yah danturit muskan class 10 | यह दन्तुरित मुसकान

yah danturit muskan class 10 | यह दन्तुरित मुसकान


 नागार्जुन 
 यह दंतुरित मुसकान 

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 यह दन्तुरित मुसकान कक्षा 10 




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यह दन्तुरित मुसकान




यह दंतुरित मुसकान कविता का सारांश
Nagarjun Ki Kavita 'yah danturit muskan' Ka Saar


यह दंतुरित मुसकान कविता में कवि ने एक बच्चे की मुस्कान का बड़ा ही मनमोहक चित्रण किया है। कवि के अनुसार बच्चे की मुस्कान में इतनी शक्ति होती है कि वह किसी मुर्दे में भी जान डाल सकती है। कवि के अनुसार एक बच्चे की मुस्कान को देखकर, हम अपने सब दुःख भूल जाते हैं और हमारा अन्तःमन प्रसन्न हो जाता है। बच्चे को धूल में लिपटा घर के आँगन में खेलता देखकर कवि को ऐसा प्रतीत होता है, मानो किसी झोंपड़ी में कमल खिला हो। कवि ने यहाँ बाल अवस्था में एक बालक द्वारा की जाने वाली नटखट और प्यारी हरकतों का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया है। जैसे जब कोई बालक किसी व्यक्ति को नहीं पहचानता है, तो उसे सीधी नज़रों से नहीं देखता, लेकिन एक बार पहचान लेने के बाद वो उसे टकटकी लगाकर देखता रहता है।


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यह दंतुरित मुसकान
मृतक में भी डाल देगी जान
धूलि-धूसर तुम्हारे ये गात
छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात
परस पाकर तुम्हारा ही प्राण,
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण


भावार्थ-  इस कविता में कवि एक ऐसे बच्चे की सुंदरता का बखान करता है जिसके अभी एक-दो दाँत ही निकले हैं; अर्थात बच्चा छ: से आठ महीने का है। जब ऐसा बच्चा अपनी मुसकान बिखेरता है तो इससे मुर्दे में भी जान आ जाती है। बच्चे के गाल धू‌ल से सने हुए ऐसे लग रहे हैं जैसे तालाब को छोड़कर कमल का फूल उस झोंपड़ी में खिल गया हो। कवि को लगता है कि बच्चे के स्पर्श को पाकर ही सख्त पत्थर भी पिघलकर पानी बन गया है।


छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल
बाँस था कि बबूल?
तुम मुझे पाए नहीं पहचान?
देखते ही रहोगे अनिमेष!
थक गए हो?
आँख लूँ मैं फेर?


भावार्थ- कवि को ऐसा लगता है कि उस बच्चे के निश्छल चेहरे में वह जादू है कि उसको छू लेने से बाँस या बबूल से भी शेफालिका के फूल झरने लगते हैं। बच्चा कवि को पहचान नहीं पा रहा है और उसे अपलक देख रहा है। कवि उस बच्चे से कहता है कि यदि वह बच्चा इस तरह अपलक देखते-देखते थक गया हो तो उसकी सुविधा के लिए कवि उससे आँखें फेर लेगा।


क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार?
यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होती आज
मैं न पाता जान
धन्य तुम, माँ भी तुम्हारी धन्य!
चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य!
इस अतिथि से प्रिय तुम्हारा क्या रहा संपर्क


भावार्थ-  कवि को इस बात का जरा भी अफसोस नहीं है कि बच्चे से पहली बार में उसकी जान पहचान नहीं हो पाई है। लेकिन वह इस बात के लिए उस बच्चे और उसकी माँ का शुक्रिया अदा करना चाहता है कि उनके कारण ही कवि को भी उस बच्चे के सौंदर्य का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। कवि तो उस बच्चे के लिए एक अजनबी है, परदेसी है इसलिए वह खूब समझता है कि उससे उस बच्चे की कोई जान पहचान नहीं है।


उँगलियाँ माँ की कराती रही हैं मधुपर्क
देखते तुम इधर कनखी मार
और होतीं जब कि आँखें चार
तब तुम्हारी दंतुरित मुसकान
मुझे लगती बड़ी ही छविमान!


भावार्थ-  बच्चा अपनी माँ की उँगली चूस रहा है तो ऐसा लगता है कि उसकी माँ उसे अमृत का पान करा रही है। इस बीच वह बच्चा कनखियों से कवि को देखता है। जब दोनों की आँखें आमने सामने होती हैं तो कवि को उस बच्चे की सुंदर मुसकान की सुंदरता के दर्शन हो जाते हैं।


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प्रश्न  1. बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर- बच्चे की दंतुरित मुसकान को देखकर कवि का मन अत्यंत प्रसन्न हो उठा। प्रवास पर रहने के कारण वह शिशु को पहली बार देखता है तो उसकी दंतुरित मुसकान पर मुग्ध हो जाता है। इससे कवि के मन की सारी निराशा और उदासी दूर हो जाती है।

प्रश्न 2. बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है?
उत्तर- बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में बहुत अंतर होता है। बच्चे की मुसकान अत्यंत सरल, निश्छल, भोली और स्वार्थरहित होती है। इस मुसकान में स्वाभाविकता होती है। इसके विपरीत एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में स्वार्थपरता तथा बनावटीपन होता है। वह तभी मुसकराता है जब उसका स्वार्थ होता है। इसमें कुटिलता देखी जा सकती है जबकि बच्चे की मुसकान में सरलता दिखाई देती है।

प्रश्न 3. कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है?
उत्तर- कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को निम्नलिखित बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है
कवि को लगता है कि कमल तालाब छोड़कर इसकी झोपड़ी में खिल गये हैं।
ऐसा लगता है जैसे पत्थर पिघलकर जलधारा के रूप में बह रहे हों।
बाँस या बबूल से शेफालिका के फूल झरने लगे हों।

प्रश्न 4. भाव स्पष्ट कीजिए-

(क) छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात।

उत्तर- ‘छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात’ का आशय यह है कि कवि को बच्चे का धूल धूसरित शरीर देखकर ऐसा लगता है जैसे कमल तालाब छोड़कर उसकी झोपड़ी में खिल गए हों अर्थात् बच्चे का रूप सौंदर्य कमल पुष्प के समान सुंदर है।

(ख) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल?

उत्तर-  कम उम्र वाले शिशु जिनके दाँत निकल रहे होते हैं, उनकी मुसकान मनोहारी होती है। ऐसे बच्चों की निश्छल मुसकान देखकर उसका स्पर्श पाकर बाँस या बबूल से भी शेफालिका के फूल झड़ने लगते हैं अर्थात् कठोर हृदय वाला व्यक्ति भी सरस हो जाता है और मुसकराने लगता है।


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रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5. मुसकान और क्रोध भिन्न-भिन्न भाव हैं। इनकी उपस्थिति से बने वातावरण की भिन्नता का चित्रण कीजिए।
उत्तर- मुसकान से किसी व्यक्ति की प्रसन्नता व्यक्त होती है। मुसकराने वाला स्वयं तो खुश होता ही है, अपनी मुसकान से दूसरों को भी प्रसन्न कर देता है। इससे वातावरण बोझिल होने से बच जाता है। दूसरी ओर क्रोध हमारे मन की व्यग्रता, आक्रोश और अप्रसन्नता का भाव प्रकट करता है। क्रोध की अधिकता में हम अपना नियंत्रण खो बैठते हैं और वाचा, मनसा, कर्मणा दुर्व्यवहार करने लगते हैं। इससे वातावरण में शांति कहीं खो जाती है और वातावरण में कटुता घुल जाती है।

प्रश्न 6. दंतुरित मुसकान से बच्चे की उम्र का अनुमान लगाइए और तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर- यह दंतुरित मुसकान कविता में वर्णित शिशु के क्रियाकलापों से यह अनुमान लगता है कि उसकी उम्र पाँच-छह महीने होगी क्योंकि इसी उम्र में बच्चे अपरिचित को पहचानने का प्रयास करते हैं तथा उनके दाँत निकलने शुरू हो जाते हैं।
 
प्रश्न 7. बच्चे से कवि की मुलाकात का जो शब्द-चित्र उपस्थित हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- प्रवास से काफी दिनों बाद लौटकर आए कवि की मुलाकात जब शिशु से होती है तो वह शिशु की मुसकान देखकर मुग्ध हो जाता है। उसकी दंतुरित मुसकान देखकर कवि की निराशा और उदासी गायब हो गई। उसे लगा कि उसकी झोंपड़ी में कमल खिल उठे हों। शिशु का स्पर्श पाते ही कवि का हृदय वात्सल्य भाव से भर उठा। इससे कवि के मन की खुशी उसके चेहरे पर छलक उठी। पहचान न पाने के कारण शिशु कवि को अपलक निहारता रहा। कवि सोचता है कि यदि । उसकी माँ माध्यम न बनती तो वह यह मुसकान देखने से वंचित रह जाता। इसी बीच जब शिशु ने तिरछी नज़र से कवि को देखा तो नन्हें-नन्हें दाँतों वाली यह मुसकान कवि को और भी सुंदर लगने लगी।



यह दन्तुरित मुसकान के अन्य प्रश्न

प्रश्न 1. ‘मृतक में भी डाल देगी जान’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- शिशु की नवोदित दाँतों वाली सुंदर मुसकान व्यक्ति के हृदय में सरसता उत्पन्न कर देती है। इससे थक-हारकर निराश और निष्प्राण हो चुका व्यक्ति भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता है। ऐसे व्यक्ति के मन में भी कोमल भावों का उदय होता है और वह शिशु को देखकर हँसने-मुसकराने के लिए बाध्य हो जाता है।

प्रश्न 2. यह दंतुरित मुसकान कविता में ‘बाँस और बबूल’ किसके प्रतीक बताए गए हैं? इन पर शिशु की मुसकान का के या असर होता है?
उत्तर- यह दंतुरित मुसकान कविता में ‘बाँस और बबूल’ कठोर और निष्ठुर हृदय वाले लोगों का प्रतीक है। ऐसे लोगों पर मानवीय संवेदनाओं का कोई असर नहीं होता है। ये दूसरों के दुख से अप्रभावित रहते हैं। शिशु की दंतुरित मुसकान देखकर ऐसे लोग भी सहृदय बन जाते हैं और उसके मुसकान के रूप में शेफालिका के फूल झड़ने लगते हैं।
 
प्रश्न 3. ‘चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य’ कवि ने ऐसा क्यों कहा है?
उत्तर- कवि नागार्जुन यायावर अर्थात् घुमंतू व्यक्ति थे। वे देश-विदेश के भ्रमण के क्रम में घर पर कम ही रुकते थे। उनकी यह यात्राएँ कई-कई महीनों की हुआ करती थीं। ऐसे ही प्रवास के बाद जब कवि अपने घर लौटा तो शिशु ने उसे पहली बार देखा और पहचान न सका। अपने ही घर में अपनी ऐसी स्थिति देख कवि ने कहा, चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य।

प्रश्न 4. शिशु के धूल लगे शरीर को देखकर कवि को कैसा लगा?
उत्तर- शिशु को धूल-धूसरित शरीर कवि को मुग्ध कर गया। शिशु के ऐसे शरीर को देखकर कवि को लगा कि जैसे तालाब छोड़कर कमल उसकी झोंपड़ी में खिल गया हो और अपना रूप-सौंदर्य बिखेर रहा हो।

प्रश्न 5. ‘पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण’ के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर- ‘पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण’ के माध्यम से कवि यह कहना चाहता है कि शिशु की नवोदित मुसकान अत्यंत मनोहारी होती है। इससे प्रभावित हुए बिना व्यक्ति नहीं रह सकता है। इस मुसकान के वशीभूत होकर पत्थर जैसा कठोर हृदय वाला व्यक्ति भी पिघलकर पानी की तरह हो जाता है।

प्रश्न 6. शिशु किसे अनिमेष ताके जा रहा था और क्यों?
उत्तर- शिशु अनिमेष कवि को ताके जा रहा था। इसका कारण यह था कि प्रवास में रहने के कारण कवि काफ़ी दिनों बाद घर आया था और शिशु उसे पहली बार देखने के कारण पहचान नहीं पा रहा था। शिशु के लिए कवि अपरिचित था और उसे पहचानने का प्रयास कर रहा था।

प्रश्न 7. कवि शिशु की ओर से आँखें क्यों फेर लेना चाहता है?
उत्तर- कवि शिशु की ओर से इसलिए आँखें फेर लेना चाहता है क्योंकि कवि को न पहचान पाने के कारण शिशु उसे अपलक देखे जा रहा है। कवि को लगता है कि इस तरह अपलक निहारने के कारण शिशु शायद थक गया होगा। शिशु को थकान से बचाने और उसका ध्यान अपनी ओर से हटाने के कारण कवि आँखें फेर लेना चाहता है।


प्रश्न 8. ‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता में कवि ने नारी को गरिमामय स्थान प्रदान किया है? इससे आप कितना सहमत हैं, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर- ‘दंतुरित मुसकान’ कविता में कवि ने शिशु की माँ को महत्ता देकर संपूर्ण नारी जाति को गरिमामय स्थान प्रदान किया है। मैं इससे पूर्णतया सहमत हूँ। इसका कारण यह है कि कवि यह स्वीकार करता है कि शिशु की माँ न होती तो वह शिशु से परिचित न हो पाता। इस प्रकार का यथार्थ पाठकों के सामने रखकर उसने नारी जाति की गरिमा बढ़ाई है।

प्रश्न 9. “यह दंतुरित मुसकान’ कविता में कवि ने किन्हें धन्य कहा है और क्यों?
उत्तर- ‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता में कवि ने नवजात शिशु और उसकी माँ दोनों को धन्य कहा है। उन्होंने शिशु को इसलिए धन्य कहा है क्योंकि ऐसी मुसकान के प्रभाव से कठोर हृदय और थका-हारा जीवन से निराश व्यक्ति भी सहृदय और नवोत्साह से भर उठता है। उन्होंने शिशु की माँ को इसलिए धन्य कहा है क्योंकि उसी के कारण कवि को सुंदर शिशु और उसकी मुसकान देखने का अवसर मिला।


नागार्जुन का जीवन परिचय
Nagarjun Ka Jeevan Parichay


नागार्जुन का जन्म 1911 ई० की ज्येष्ठ पूर्णिमा को बिहार के सतलखा में हुआ था। इनके पिता का नाम गोकुल मिश्र और माता का नाम उमा देवी था। बाद में नामकरण के बाद इनका नाम वैद्यनाथ मिश्र रखा गया। छह वर्ष की आयु में ही इनकी माता का देहांत हो गया। इनके पिता इन्हे कंधे पर बैठाकर अपने संबंधियों के यहाँ, एक गाँव से दूसरे गाँव आया-जाया करते थे। इस प्रकार बचपन में ही इन्हें पिता की लाचारी के कारण घूमने की आदत पड़ गयी और बड़े होकर यह घूमना उनके जीवन का स्वाभाविक अंग बन गया।

इन्होंने अपनी विधिवत संस्कृत की पढ़ाई बनारस जाकर शुरू की। वहीं इन पर आर्य समाज का प्रभाव पड़ा और फिर बौद्ध दर्शन की ओर झुकाव हुआ। उन दिनों राजनीति में सुभाष चंद्र बोस इन्हें प्रिय थे। इन्होंने बनारस से निकल कर कोलकाता और फिर दक्षिण भारत घूमते हुए, लंका के विख्यात ‘विद्यालंकार परिवेण’ में जाकर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। साहित्यिक रचनाओं के साथ-साथ नागार्जुन राजनीतिक आंदोलनों में भी प्रत्यक्षतः भाग लेते रहे। स्वामी सहजानंद से प्रभावित होकर इन्होंने बिहार के किसान आंदोलन में भाग लिया और जेल की सजा भी भुगती। चंपारण के किसान आंदोलन में भी इन्होंने भाग लिया। वस्तुतः वे रचनात्मक के साथ-साथ सक्रिय प्रतिरोध में विश्वास रखते थे।

कविता, उपन्यास, कहानी, संस्मरण, यात्रा-वृत्तांत, निबन्ध, बाल-साहित्य सभी क्षेत्र में इन्होंने अपनी कलम चलाई। नागार्जुन सही अर्थों में भारतीय मिट्टी से बने आधुनिक कवि हैं। इन्हें कई सारे पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जैसे – भारत भारती सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, राजेन्द्र शिखर सम्मान एवं साहित्य अकादमी पुरस्कार।



जय हिन्द : जय हिंदी 
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